रोशनी कम होती जा रही है
रोशनी कम होती जा रही है
परछाइयां बढती जा रही हैं
विष्वास और प्रेम की नदी
हर रोज सूखती जा रही है
यादों ने जोड़ रखा था तुमसे
वह कडी भी टूटती जा रही है
विरह यामिनी सौत बन गयी
प्रेम की लडी टूटती जा रही है
तुम्हारे वियोग मे सखी देह
रात दिन गलती जा रही है
मुकेश इलाहाबादी ............
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