धूप मे तपन है
चुप सा चमन है
खुदगर्ज जहां है
अपने मे मगन है
धुऑ ही धुऑ है
तभी तो घुटन है
सभी परॆशान हैं
ये कैसा चमन है
तुम्हारे शहर मे
झूठ का चलन है
मुकेश इलाहाबादी ..
चुप सा चमन है
खुदगर्ज जहां है
अपने मे मगन है
धुऑ ही धुऑ है
तभी तो घुटन है
सभी परॆशान हैं
ये कैसा चमन है
तुम्हारे शहर मे
झूठ का चलन है
मुकेश इलाहाबादी ..
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