जिंदगी गुजर रही है मैखानो मे
हैं अश्क मेरे ढल रहे पैमानो मे
दवा ऐ इश्क ढूंढता फिर रहा हूं
इन चकमक दकमक दुकानो मे
इक जंगल छुपा है मेरी ऑखों मे
क्यूं दूर जा रहे हो वियाबानो मे
तुम बेकार ढूंढ रहे हो इन्सानो को
मुर्दे रहा करते हैं इन मकानो मे
जो खिलखिलाती रही धूप दिन भर
शाम से उदास बैठी है दालानों मे
मुकेश इलाहाबादी .................
हैं अश्क मेरे ढल रहे पैमानो मे
दवा ऐ इश्क ढूंढता फिर रहा हूं
इन चकमक दकमक दुकानो मे
इक जंगल छुपा है मेरी ऑखों मे
क्यूं दूर जा रहे हो वियाबानो मे
तुम बेकार ढूंढ रहे हो इन्सानो को
मुर्दे रहा करते हैं इन मकानो मे
जो खिलखिलाती रही धूप दिन भर
शाम से उदास बैठी है दालानों मे
मुकेश इलाहाबादी .................
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