जब जिस्म की नश नश तड़कती है
दिन भर की थकान बयाँ करती है
कोई नस्ल कोई रंग कि कोई जातहो
आँखों की भाषा आँखें ही समझती है
बोझ जब उठा नहीं पाती हैं आब का
बदलियाँ जा के परवत पे बरसती है
वो मेहँदी लगे हाथ पायल वाले पाँव
गोरी के हाथो में चूड़ियाँ खनकती है
चाँद की ये शोखियाँ देख - देख कर
सागर के दिल में लहरें मचलती है
मुकेश इलाहाबादी --------------------
दिन भर की थकान बयाँ करती है
कोई नस्ल कोई रंग कि कोई जातहो
आँखों की भाषा आँखें ही समझती है
बोझ जब उठा नहीं पाती हैं आब का
बदलियाँ जा के परवत पे बरसती है
वो मेहँदी लगे हाथ पायल वाले पाँव
गोरी के हाथो में चूड़ियाँ खनकती है
चाँद की ये शोखियाँ देख - देख कर
सागर के दिल में लहरें मचलती है
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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