अवसाद के काले नागों का डेरा है
शहर में हमारे अँधेरा ही अँधेरा है
ये किसी शैतान की साज़िश है,
हमारे ऊपर बुरे वक़्त का फेरा है
हम बंजारों का घर नहीं होता है
जहाँ रुक गए वही हमारा डेरा है
तुम ही सम्हालो,अपनी अमानत
अब से ये दिल हमारा नहीं तेरा है
बाद मरने के साथ कुछ न जाएगा
यहां न कुछ मेरा है न कुछ तेरा है
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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