कागज़ की कश्ती थी
औ रेत का समंदर था
इक तूफ़ान बाहर और
दूजा दिल के अंदर था
मिल के गले गया है जो
उसके हाथ में खंज़र था
जिसको गुलशन समझे
वह तो उजड़ा मंज़र था
ऊपर से शायर दीखता
दिल से एक कलंदर था
मुकेश इलाहाबादी -------
औ रेत का समंदर था
इक तूफ़ान बाहर और
दूजा दिल के अंदर था
मिल के गले गया है जो
उसके हाथ में खंज़र था
जिसको गुलशन समझे
वह तो उजड़ा मंज़र था
ऊपर से शायर दीखता
दिल से एक कलंदर था
मुकेश इलाहाबादी -------
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