मुहब्बत के फूल खिलाओ प्यारे
दिले चमन को महकाओ प्यारे
है रात अंधेरी और सफर लम्बा
मसाल ऐ हौसला जलाओ प्यारे
नफरत पत्थर की लकीर नहीं है
मिल कर रंजिशें मिटाओ प्यारे
कुछ सिरफिरे भाई भटके गए हैं,
उन्हें भी राहे इश्क़ दिखाओ प्यारे
बहुत दिनों बाद तो मिले हो तुम
ज़िदंगी कैसी कटी बताओ प्यारे
यूँ गुमसुम से तो न बैठो मुकेश
कोई इक ग़ज़ल सुनाओ प्यारे
मुकेश इलाहाबादी -------------
दिले चमन को महकाओ प्यारे
है रात अंधेरी और सफर लम्बा
मसाल ऐ हौसला जलाओ प्यारे
नफरत पत्थर की लकीर नहीं है
मिल कर रंजिशें मिटाओ प्यारे
कुछ सिरफिरे भाई भटके गए हैं,
उन्हें भी राहे इश्क़ दिखाओ प्यारे
बहुत दिनों बाद तो मिले हो तुम
ज़िदंगी कैसी कटी बताओ प्यारे
यूँ गुमसुम से तो न बैठो मुकेश
कोई इक ग़ज़ल सुनाओ प्यारे
मुकेश इलाहाबादी -------------
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