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Monday, 4 August 2014

मुहब्बत के फूल खिलाओ प्यारे

मुहब्बत के फूल खिलाओ प्यारे
दिले चमन को महकाओ प्यारे

है रात अंधेरी और सफर लम्बा
मसाल ऐ हौसला जलाओ प्यारे

नफरत पत्थर की लकीर नहीं है 
मिल कर रंजिशें मिटाओ प्यारे

कुछ सिरफिरे भाई भटके गए हैं,
उन्हें भी राहे इश्क़ दिखाओ प्यारे 

बहुत दिनों बाद तो मिले हो तुम
ज़िदंगी कैसी कटी बताओ प्यारे

यूँ गुमसुम से तो न बैठो मुकेश 
कोई इक ग़ज़ल सुनाओ प्यारे

मुकेश इलाहाबादी -------------

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