तुम्हारी मज़बूरियां समझता हूँ
इसीलिये तो मै भी चुप रहता हूँ
इसीलिये तो मै भी चुप रहता हूँ
तेरे चेहरे पे इक तबस्सुम देखूं
सिर्फ इसीलिये गज़लें कहता हूँ
मेरे बाहर भीतर इक जंगल है
मै भावों के जंगल में रहता हूँ
तनहाई,रुसवाई तेज़ाबी बारिस
देखो आंधी तूफाँ में मै रहता हूँ
ज़मी औ खुला आसमाँ मेरा घर
देखो मै भी क्या क्या सहता हूँ
देखो मै भी क्या क्या सहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------
No comments:
Post a Comment