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Thursday, 8 October 2015

अपना वीराना घर गुलज़ार कर लेता हूँ

अपना वीराना घर गुलज़ार कर लेता हूँ
तू नहीं तेरी तस्वीर से बात कर लेता हूँ

तू चाँद,चांदनी बन के बरसेगी, इक रोज़
यही सोच कर मै,इत्मीनान कर लेता हूँ

दरीचे दरवाज़े बंद कर परदे खींच देता हूँ
इस तरह दिन को ही मै रात कर लेता हूँ

तेरे गालों के गुलाल और यादों के चराग़
अपनी होली दिवाली,त्यौहार कर लेता हूँ

मुकेश दिन मुफलिसी के हों या ग़ुरबत के
तेरी बातों से दिन अपना ख़ास कर लेता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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