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Wednesday, 2 December 2015

सपने को अधूरा छोड़ के

सुमी ,
मुझे मालूम है
इतने  सालों बाद
आज भी, तुम
अक्सर, रातों को
चौंक कर उठ जाती हो
सपने को अधूरा छोड़ के
जो अक्सरहां तुम्हारी नींद में
आ जाता है,
फिर,
अपनी साँसों को काबू में कर के
बालों को सहेजती हो
बगल में रखे गलास से
ठंडा पानी पी कर
तकिये को सहेज कर
कोहनी पे
सिर रखे हुए
देर तक
अँधेरे को देखते हुए
जाने क्या क्या सोचते हुए
सो जाती हो
इस उम्मीद पे
कि,
वो अधूरा ख्वाब
इस बार पूरा हो के दिखेगा
और इस बार वो
बंद आँखों से नहीं
खुली आँखों से दिखेगा

सच बताना,
ऐसा ही होता है या नहीं
तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में

मुकेश इलाहाबादी --

मुकेश इलाहाबादी --

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