कड़ी धूप का मंज़र फिर सुहाना न हुआ
तुमसे बिछड़ के दोबारा मिलना न हुआ
तुमसे मिल के हंसा था खिलखिला के मै
फिर ज़िंदगी में कभी मुस्कुराना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
तुमसे बिछड़ के दोबारा मिलना न हुआ
तुमसे मिल के हंसा था खिलखिला के मै
फिर ज़िंदगी में कभी मुस्कुराना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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