समंदर हूँ सूरज ने मुझे सुखाया बहुत
बादल बना औ हरबार मै बरसा बहुत
तवा,तलवार,तमंचा और हथौड़ा बना
लोहा हूँ आग में खुद को गलाया बहुत
फल दिया, फूल दिया और खुशबू दी
पेड़ हूँ इंसानो के लिए मै उजड़ा बहुत
कोड़े, जीन, नकेल और पैरों में नाल
घोडा हूँ दौड़ा और हिनहिनाया बहुत
ज़ख्म देकर लोग तो रुलाने पे तुले थे
ये और बात जोकर बन,हंसाया बहुत
मुकेश, जो लोग खंज़र लिए फिरते थे
उन्ही लोगों को मैंने गले लगाया बहुत
मुकेश इलाहबदी -----------------------
बादल बना औ हरबार मै बरसा बहुत
तवा,तलवार,तमंचा और हथौड़ा बना
लोहा हूँ आग में खुद को गलाया बहुत
फल दिया, फूल दिया और खुशबू दी
पेड़ हूँ इंसानो के लिए मै उजड़ा बहुत
कोड़े, जीन, नकेल और पैरों में नाल
घोडा हूँ दौड़ा और हिनहिनाया बहुत
ज़ख्म देकर लोग तो रुलाने पे तुले थे
ये और बात जोकर बन,हंसाया बहुत
मुकेश, जो लोग खंज़र लिए फिरते थे
उन्ही लोगों को मैंने गले लगाया बहुत
मुकेश इलाहबदी -----------------------
No comments:
Post a Comment