रात
तुम हँसी थी
छत पे
चाँदनी बिछ गयी थी
और
हरश्रृंगार बरसे थे
अब सुबह
कोहरे को छांट के
तुम्हारी यादों की धूप
बिखरी है जिसकी गुनगुनी धूप में
भीगा है तन बदन मेरा
मुकेश इलाहाबादी -----------
तुम हँसी थी
छत पे
चाँदनी बिछ गयी थी
और
हरश्रृंगार बरसे थे
अब सुबह
कोहरे को छांट के
तुम्हारी यादों की धूप
बिखरी है जिसकी गुनगुनी धूप में
भीगा है तन बदन मेरा
मुकेश इलाहाबादी -----------
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