कि सावन आ गया अब तो
आ हमसे मिल जा अब तो
विरह अगनि में जले बहुत
आ कुछ तो प्यास बुझा जा
है हुई, रात अंधियारी बहुत
तू दीपक तो, एक जला जा
जेठ बैसाख, हम सूखे बहुत
बादल,तू पानी तो बरसा जा
अपनी-अपनी सबने कह दी
मुकेश तू भी ग़ज़ल सुना जा
मुकेश इलाहाबादी ----------
आ हमसे मिल जा अब तो
विरह अगनि में जले बहुत
आ कुछ तो प्यास बुझा जा
है हुई, रात अंधियारी बहुत
तू दीपक तो, एक जला जा
जेठ बैसाख, हम सूखे बहुत
बादल,तू पानी तो बरसा जा
अपनी-अपनी सबने कह दी
मुकेश तू भी ग़ज़ल सुना जा
मुकेश इलाहाबादी ----------
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