Pages

Saturday, 10 December 2016

खामोश दरिया बहता रहा अपने दरम्यां

खामोश दरिया बहता रहा अपने दरम्यां
इक पुल भी न बन सका, अपने दरम्यां

माटी थी, धूप थी हवा थी पानी था,मगर 
गुले ईश्क़ न खिल सका, अपने दरम्यां

मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment