आप की सादगी आप की हंसी
न कभी देखी है, न कंही सूनी
होंटों पे ये छुपी -छुपी मुस्कान
बादलों से छन के आती चांदनी
कँवल से भी कोमल है बदन
हया से समेटे पंखुरी - पंखुरी
मुकेश इलाहाबादी -----------
न कभी देखी है, न कंही सूनी
होंटों पे ये छुपी -छुपी मुस्कान
बादलों से छन के आती चांदनी
कँवल से भी कोमल है बदन
हया से समेटे पंखुरी - पंखुरी
मुकेश इलाहाबादी -----------
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