दरिया,
तू मेरी उतनी ही
प्यास बुझा
जितने में तू मैली न हो
मेरी प्यास का क्या?
बुझे न बुझे।
बस अपनी तो
इत्ती सी इल्तज़ा है
मुकेश इलाहाबादी --
तू मेरी उतनी ही
प्यास बुझा
जितने में तू मैली न हो
मेरी प्यास का क्या?
बुझे न बुझे।
बस अपनी तो
इत्ती सी इल्तज़ा है
मुकेश इलाहाबादी --
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