Pages

Wednesday, 21 June 2017

ख़ुद के साथ बड़ी नाइंसाफी की है

ख़ुद के साथ बड़ी नाइंसाफी की है
सुबह पी है, शाम पी है, रात पी है

दुनिया समझती है, मै मौज में हूँ
सिर्फ मुझे पता है फांका मस्ती है

मेरी आँखों में है,  इक नीली झील
झील में तुम्हारे नाम की कश्ती है

शराब बिछाती है सपनो की चादर
फिर ख्वाब में इक परी उतरती है  

ज़िंदगी की अंधेरी रातों में मुकेश
तुम्हारी आँखे दिप दिप जलती हैं

मुकेश इलाहाबादी ---------

No comments:

Post a Comment