काफी रात गए तक वो जागती है
शायद किसी का इंतज़ार करती है
जब भी बात करना चाहता, हूँ तो
ज़ुबाँ से नहीं निगाहों से बोलती है
हर वक़्त ख़ुद को मसरूफ रख कर
अपने अंदर का खालीपन भरती है
मुकेश इलाहाबादी ---------------
शायद किसी का इंतज़ार करती है
जब भी बात करना चाहता, हूँ तो
ज़ुबाँ से नहीं निगाहों से बोलती है
हर वक़्त ख़ुद को मसरूफ रख कर
अपने अंदर का खालीपन भरती है
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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