जिस दिन भी तू मेरे घर आयेगी
ज़िंदगी अपनी हसीन हो जायेगी
झूम के बादल बरसेगा आँगन में
रातरानी खिलेगी खिलखिलाएगी
कबूतर का जोड़ा गुंटूर- गुं करेगा
मुंडेर पे बैठी कोयल गुनगुनायेगी
तू ज़रा सी बात पे रूठ के बैठेगी
मै मनाऊंगा तू मान भी जाएगी
अपने हाथो से गूँथूँगा इक गज़रा
जिसे तू अपने बालों में सजाएगी
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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