तुम्हारी
शोख चंचल आँखों की
मासूम चितवन को
कच्ची अमिया सी
खट - मिट्टी बातों को
झरने सी करती कल-कल
मधुर हंसी को
और,,,,
तुम्हारे ढेर सारे
अल्हड़ प्यार को अपने दिल के
छोटे से रुमाल में कैसे बाँध पाऊँगा ?
कैसे इस असमंजस से उबर पाऊंगा ?
तू ही बता, ओ ! मेरी प्रिये
ओ री, मेरी सुमी
मुकेश इलाहाबादी -----------------
शोख चंचल आँखों की
मासूम चितवन को
कच्ची अमिया सी
खट - मिट्टी बातों को
झरने सी करती कल-कल
मधुर हंसी को
और,,,,
तुम्हारे ढेर सारे
अल्हड़ प्यार को अपने दिल के
छोटे से रुमाल में कैसे बाँध पाऊँगा ?
कैसे इस असमंजस से उबर पाऊंगा ?
तू ही बता, ओ ! मेरी प्रिये
ओ री, मेरी सुमी
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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