किसी ,
दिन तो सावन से ऊब कर
तुम देखोगी
पतझड़ को
और --- अचानक याद आ जाऊँगा 'मै'
किसी दिन तो
तुम देखोगी
गरजते - बरसते मेघों को
और तुम्हे 'मै ' याद आ जाऊँगा
किसी दिन तो ........ ...
फुर्सत मिलते ही तुम सोचोगी
मेरे बारे में
तब तक मै घुल चूका होऊँगा आकाश में
फिर कभी न जमने के लिए
फिर कभी न बरसने के लिए
सावन भादों के मेघ सा
मुकेश इलाहाबादी --------------
दिन तो सावन से ऊब कर
तुम देखोगी
पतझड़ को
और --- अचानक याद आ जाऊँगा 'मै'
किसी दिन तो
तुम देखोगी
गरजते - बरसते मेघों को
और तुम्हे 'मै ' याद आ जाऊँगा
किसी दिन तो ........ ...
फुर्सत मिलते ही तुम सोचोगी
मेरे बारे में
तब तक मै घुल चूका होऊँगा आकाश में
फिर कभी न जमने के लिए
फिर कभी न बरसने के लिए
सावन भादों के मेघ सा
मुकेश इलाहाबादी --------------
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