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Monday, 24 July 2017

तेरा नाम लिखता हूँ ख़त महकने लगता है

तेरा नाम लिखता हूँ ख़त महकने लगता है
तेरी याद आती है, ये दिल चहकने लगता है

जाने क्या क्या ख्वाब बुनता है, दिले नादाँ
सर्द रातों में भी तनबदन सुलगने लगता है

तेरी बातों में तेरी संगत में कोई तो नशा है
तुझसे मिल के हर शख्श बहकने लगता है

लेटता है,  बैठता है  फिर -फिर उठ जाता है
मुकेश रातों में उठ उठ कर टहलने लगता है


मुकेश इलाहाबादी ---------------------------

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