जमा हुआ दर्द पिघला होगा
दरिया यूँ ही नहीं बहा होगा
कंठ उसका यूँ नहीं नीला है
ज़रूर हलाहल पिया होगा
धुँए की लकीर बता रही है
दिया अभी अभी बुझा होगा
झूला, गोरी, कोयल उदास हैं
बसंत आके चला गया होगा
मुकेश आजकल हँसता नहीं
तुमने भी ये बात सुना होगा
मुकेश इलाहाबादी -------------
दरिया यूँ ही नहीं बहा होगा
कंठ उसका यूँ नहीं नीला है
ज़रूर हलाहल पिया होगा
धुँए की लकीर बता रही है
दिया अभी अभी बुझा होगा
झूला, गोरी, कोयल उदास हैं
बसंत आके चला गया होगा
मुकेश आजकल हँसता नहीं
तुमने भी ये बात सुना होगा
मुकेश इलाहाबादी -------------
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