Pages

Tuesday, 4 July 2017

दिल की ज़मीन में

अपनी
साँसों की खुशबू
छोड़ आयी थी
तुम मेरे घर
जिसे मैंने 'बो' दिया था
दिल की ज़मीन में
फिर
वक़्त के सूरज ने धूप दी
यादों ने खाद पानी दिया
मेरी धड़कती सांसो ने हवा दी

अब -
तुम्हारी साँसे रजनीगंधा सा खिल के
महकाती हैं मेरी रातों को

(तुम अपनी सांसो को हर जगह मत भूलना)

मुकेश इलाहाबादी -----------

No comments:

Post a Comment