अपनी
साँसों की खुशबू
छोड़ आयी थी
तुम मेरे घर
जिसे मैंने 'बो' दिया था
दिल की ज़मीन में
फिर
वक़्त के सूरज ने धूप दी
यादों ने खाद पानी दिया
मेरी धड़कती सांसो ने हवा दी
अब -
तुम्हारी साँसे रजनीगंधा सा खिल के
महकाती हैं मेरी रातों को
(तुम अपनी सांसो को हर जगह मत भूलना)
मुकेश इलाहाबादी -----------
साँसों की खुशबू
छोड़ आयी थी
तुम मेरे घर
जिसे मैंने 'बो' दिया था
दिल की ज़मीन में
फिर
वक़्त के सूरज ने धूप दी
यादों ने खाद पानी दिया
मेरी धड़कती सांसो ने हवा दी
अब -
तुम्हारी साँसे रजनीगंधा सा खिल के
महकाती हैं मेरी रातों को
(तुम अपनी सांसो को हर जगह मत भूलना)
मुकेश इलाहाबादी -----------
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