उन्ही - उन्ही गलियों में अटका हुआ है
मुसाफिर, शायद राह से भटका हुआ है
दरवाज़ा खोल के देखा, कोइ नही, फिर
क्यूं किसी के होने का खटका हुआ है ?
न वो हाँ कहती है, न ही 'न' कहती है,
दिल अजब कश्मकश में लटका हुआ है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
मुसाफिर, शायद राह से भटका हुआ है
दरवाज़ा खोल के देखा, कोइ नही, फिर
क्यूं किसी के होने का खटका हुआ है ?
न वो हाँ कहती है, न ही 'न' कहती है,
दिल अजब कश्मकश में लटका हुआ है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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