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Wednesday, 2 August 2017

तुम्हारे रूठ के जाने के बाद

तुम्हारे
रूठ के जाने के बाद
इक लम्बे इंतज़ार के बाद
तुम्हारे लौटने की
सारी उम्मीदों के खत्म होने के बाद

मन  स्लेट से सारे बिम्ब मिटा देने की गरज़ से

शब्दों के हवन कुंड में तुम्हारे
तुम्हारी पवित्र यादों की आहुतियां दी
जो समाप्त होने की जगह
यज्ञ की लपटों सा और और धधकने लगी हैं
और मेरे चारों और अब पवित्र खुशबू सा भी
व्याप्त हो गयी हो

ओ ! मेरी समिधा
ओ ! मेरी यज्ञ
ओ ! मेरी देवी

तुम सुन रही हो न ??

मेरी सुमी सुन रही हो न ??

मुकेश इलाहाबादी --------------

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