मै
न खत्म होने वाली
रात बन जाना चाहता हूँ
जिसमे
तुम्हारे नाम के चाँद हो सितारे हों
तुम्हारे आँचल सा फैला आकाश हो
तपो
खूब तपो
जीवन की दोपहरिया में,
सूरज सा तपो
और मै सूरजमुखी सा उगूं
जिधर -जिधर तुम चलो
उधर - उधर घूमू
तुम
नदिया सा उफनती रहो
बहती रहो
मै साहिल सा निश्चल - निष्कम्प
तुम्हे समेटे रहूँ अपनी बाँहों में
मुकेश इलाहाबादी -----------------
न खत्म होने वाली
रात बन जाना चाहता हूँ
जिसमे
तुम्हारे नाम के चाँद हो सितारे हों
तुम्हारे आँचल सा फैला आकाश हो
तपो
खूब तपो
जीवन की दोपहरिया में,
सूरज सा तपो
और मै सूरजमुखी सा उगूं
जिधर -जिधर तुम चलो
उधर - उधर घूमू
तुम
नदिया सा उफनती रहो
बहती रहो
मै साहिल सा निश्चल - निष्कम्प
तुम्हे समेटे रहूँ अपनी बाँहों में
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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