Pages

Thursday, 3 August 2017

उलझने तो बहुत हैं लेकिन

उलझने तो बहुत हैं लेकिन
तुम्ही से उम्मीद है लेकिन

बाहर तो हँसता ही मिलेगा
अंदर से ग़मगीन है लेकिन

उड़ता तो हूँ,  मै खलाओं में
पाँव तले, ज़मीन है लेकिन

दौलते,जहाँ हो न हो, मगर
मेरा दोस्त हसीन है लेकिन

भले मुकेश तुम्हे अच्छा लगे
वो कुछ तो अजीब है लेकिन

मुकेश इलाहाबादी --------

No comments:

Post a Comment