ग़ैर नहीं अपनी सी लगती है अब तो
ये तन्हाई बहुत बतियाती है अब तो
स्याह रात किसी लिहाफ से कम नहीं
सांझ होते ही लिपट जाती है अब तो
जवानी में ईश्क़ के बारे में सोचा नहीं
इक साथी की कमी खलती है अब तो
याद आते हैं गुनाह अपने तो, मेरी ही
रूह मुझसे ही लड़ने लगती है अब तो
मुकेश इलाहाबादी --------------------
ये तन्हाई बहुत बतियाती है अब तो
स्याह रात किसी लिहाफ से कम नहीं
सांझ होते ही लिपट जाती है अब तो
जवानी में ईश्क़ के बारे में सोचा नहीं
इक साथी की कमी खलती है अब तो
याद आते हैं गुनाह अपने तो, मेरी ही
रूह मुझसे ही लड़ने लगती है अब तो
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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