हे गंगे,
अच्छा होता, तुम
पाप के साथ- साथ पुण्य भी
धो देतीं
क्यूँ कि पाप के बोझ से ज़्यादा
पुण्य के अहंकार से धरती
पाताल में धंसती जा रही है
मुकेश इलाहाबादी --------------
अच्छा होता, तुम
पाप के साथ- साथ पुण्य भी
धो देतीं
क्यूँ कि पाप के बोझ से ज़्यादा
पुण्य के अहंकार से धरती
पाताल में धंसती जा रही है
मुकेश इलाहाबादी --------------
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