Pages

Thursday, 19 April 2018

जाने क्या क्या सपने बुनने लगता है मन

जाने क्या क्या सपने बुनने लगता है मन
तुमसे बतियाऊं तो महकने लगता है मन
बुझा हुआ अलाव था मेरा मन तुमसे मिल
जाने क्यूँ हौले- हौले दहकने लगता है मन
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

No comments:

Post a Comment