हर बरस बाढ़ आती है, हम डूब जाते हैं
हम बेशरम के पौधें, हर बार उग आते हैं
शरम हया सब घोंट कर पी गए हैं, हम
चाहे जित्ता कूटो मारो हम मुस्कुराते हैं
कभी कुत्ता कभी बिल्ली तो कभी चूहा
तो हम कभी घोडा बन के हिनहिनाते हैं
ये हिटलर मुसोलनी जानते हैं हम सिर्फ
फेस बुक और व्हाट्स एप पे टरटराते हैं
हमारी बहु बेटियों की अस्मत लुटती है
हम विरोध में सिर्फ मोमबत्ती जलाते हैं
दुनिया ज्ञान विज्ञानं सिखाती है, हम
बच्चों को हिन्दू मुसलमान सिखाते हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
हम बेशरम के पौधें, हर बार उग आते हैं
शरम हया सब घोंट कर पी गए हैं, हम
चाहे जित्ता कूटो मारो हम मुस्कुराते हैं
कभी कुत्ता कभी बिल्ली तो कभी चूहा
तो हम कभी घोडा बन के हिनहिनाते हैं
ये हिटलर मुसोलनी जानते हैं हम सिर्फ
फेस बुक और व्हाट्स एप पे टरटराते हैं
हमारी बहु बेटियों की अस्मत लुटती है
हम विरोध में सिर्फ मोमबत्ती जलाते हैं
दुनिया ज्ञान विज्ञानं सिखाती है, हम
बच्चों को हिन्दू मुसलमान सिखाते हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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