दोस्त, दर्द किसके जिगर में निहां नहीं है
कोई बयाँ कर देता है, कोई कहता नहीं है
बड़े - बड़े पेड़ों सी उसमे अकड़ नहीं होती
इसीलिए तिनका तूफां में भी टूटता नहीं है
भगवत गीता पढ़ने के बाद ये इल्म हुआ
शरीर नष्ट होता है, इंसान मरता नहीं है
जिस्म किसी मक़बरे से ज़्यादा कुछ नहीं
दिल में अगर किसी के कोई रहता नहीं है
जिसके भी जिस्म में लहू है, रवानी है,तो
वो कंही भी कोई भी ज़ुल्म सहता नहीं है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
कोई बयाँ कर देता है, कोई कहता नहीं है
बड़े - बड़े पेड़ों सी उसमे अकड़ नहीं होती
इसीलिए तिनका तूफां में भी टूटता नहीं है
भगवत गीता पढ़ने के बाद ये इल्म हुआ
शरीर नष्ट होता है, इंसान मरता नहीं है
जिस्म किसी मक़बरे से ज़्यादा कुछ नहीं
दिल में अगर किसी के कोई रहता नहीं है
जिसके भी जिस्म में लहू है, रवानी है,तो
वो कंही भी कोई भी ज़ुल्म सहता नहीं है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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