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Monday, 20 August 2018

एक रिश्ता होता है दुनियावी

 एक
रिश्ता  होता है
दुनियावी

जिस्म से जिस्म का
मन  से मन का
जिसमे कुछ वायदे होते हैं
कुछ कसमे होती हैं
कुछ ज़माने की बनाई मर्यादाएं होती हैं
इनकी इक उम्र होती है
कुछ दिन कुछ महीने
या कुछ साल भी
कई बार उम्र भर भी होती है
बस ! उसके बाद सब कुछ खत्म

पर
इक रिश्ता और होता है
वो होता है
रूह से रूह का 
जिसमे न कोई वायदा
न कोइ कसम 
न कोइ बंदिश 
यंहा तक कि
कोई नाम भी नहीं होता
बस, 
इक खुशबू भर होती है
जो महकती रहती है - अहर्निश
एक दुसरे की रूह की रूह तक

जिसे सिर्फ
दो रिश्तेदार ही जानते हैं
समझते हैं - निभाते हैं
उम्र भर -
कई - कई बार कई जन्मो तक भी

इस रिश्ते की सलेट पे
सिर्फ एक ही लफ़ज़ होता है
"मुहब्बत "  बे पनाह "मुहब्बत "
 बाकी सलेट कोरी की कोरी होती है
और ये लफ़्ज़े मुहब्बत भी
दिल की सलेट पे - "आब" से लिखा होता है
जिसे सिर्फ - मुहब्बत की आँख वाला ही पढ़ पाता है

बस ऐसा ही इक रिश्ता है
शायद - तेरा और मेरा

दिल से दिल का
रूह से रूह का

समझी कि  नहीं समझी समझी ???

मेरी  लाडो -  मेरी क्यूटी
मेरी सुमी ,,,,,,,,,,,,

मुकेश इलाहाबादी --------

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