एक
रिश्ता होता है
दुनियावी
जिस्म से जिस्म का
मन से मन का
जिसमे कुछ वायदे होते हैं
कुछ कसमे होती हैं
कुछ ज़माने की बनाई मर्यादाएं होती हैं
इनकी इक उम्र होती है
कुछ दिन कुछ महीने
या कुछ साल भी
कई बार उम्र भर भी होती है
बस ! उसके बाद सब कुछ खत्म
पर
इक रिश्ता और होता है
वो होता है
रूह से रूह का
जिसमे न कोई वायदा
न कोइ कसम
न कोइ बंदिश
यंहा तक कि
कोई नाम भी नहीं होता
बस,
इक खुशबू भर होती है
जो महकती रहती है - अहर्निश
एक दुसरे की रूह की रूह तक
जिसे सिर्फ
दो रिश्तेदार ही जानते हैं
समझते हैं - निभाते हैं
उम्र भर -
कई - कई बार कई जन्मो तक भी
इस रिश्ते की सलेट पे
सिर्फ एक ही लफ़ज़ होता है
"मुहब्बत " बे पनाह "मुहब्बत "
बाकी सलेट कोरी की कोरी होती है
और ये लफ़्ज़े मुहब्बत भी
दिल की सलेट पे - "आब" से लिखा होता है
जिसे सिर्फ - मुहब्बत की आँख वाला ही पढ़ पाता है
बस ऐसा ही इक रिश्ता है
शायद - तेरा और मेरा
दिल से दिल का
रूह से रूह का
समझी कि नहीं समझी समझी ???
मेरी लाडो - मेरी क्यूटी
मेरी सुमी ,,,,,,,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी --------
रिश्ता होता है
दुनियावी
जिस्म से जिस्म का
मन से मन का
जिसमे कुछ वायदे होते हैं
कुछ कसमे होती हैं
कुछ ज़माने की बनाई मर्यादाएं होती हैं
इनकी इक उम्र होती है
कुछ दिन कुछ महीने
या कुछ साल भी
कई बार उम्र भर भी होती है
बस ! उसके बाद सब कुछ खत्म
पर
इक रिश्ता और होता है
वो होता है
रूह से रूह का
जिसमे न कोई वायदा
न कोइ कसम
न कोइ बंदिश
यंहा तक कि
कोई नाम भी नहीं होता
बस,
इक खुशबू भर होती है
जो महकती रहती है - अहर्निश
एक दुसरे की रूह की रूह तक
जिसे सिर्फ
दो रिश्तेदार ही जानते हैं
समझते हैं - निभाते हैं
उम्र भर -
कई - कई बार कई जन्मो तक भी
इस रिश्ते की सलेट पे
सिर्फ एक ही लफ़ज़ होता है
"मुहब्बत " बे पनाह "मुहब्बत "
बाकी सलेट कोरी की कोरी होती है
और ये लफ़्ज़े मुहब्बत भी
दिल की सलेट पे - "आब" से लिखा होता है
जिसे सिर्फ - मुहब्बत की आँख वाला ही पढ़ पाता है
बस ऐसा ही इक रिश्ता है
शायद - तेरा और मेरा
दिल से दिल का
रूह से रूह का
समझी कि नहीं समझी समझी ???
मेरी लाडो - मेरी क्यूटी
मेरी सुमी ,,,,,,,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी --------
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