ख़ुद से ख़ुद को सजा देता हूँ
फिर देर तक रो भी लेता हूँ
मुझको खुद भी नहीं मालूम
अपने को क्यूँ सजा देता हूँ
ज़िंदगी की बढे दरियाव में
तेरे नाम की नैया खेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------
फिर देर तक रो भी लेता हूँ
मुझको खुद भी नहीं मालूम
अपने को क्यूँ सजा देता हूँ
ज़िंदगी की बढे दरियाव में
तेरे नाम की नैया खेता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------------
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