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Saturday, 3 November 2018

वो तो आदतन मुस्कुराता रहता हूँ

वो तो आदतन मुस्कुराता रहता हूँ
वर्ना ज़्यादातर तो ग़म ज़दा रहता हूँ

अपनी सारी ख्वाहिशें दफन कर के
अपने ही वज़ूद की कब्र में रहता हूँ

स्याह रातों को जब नींद नही आती
सीने के ज़ख्मों को गिना करता हूँ

वक़्त के दरिया में ख़ुद को डाल कर
अक्सरहाँ मै दूर तक बहा करता हूँ

मुझ अवारा से कोई बात नही करता
अपनी तन्हाई से बतियाया करता हूँ

मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,

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