दिलों में डर,डेरा जमाये बैठा है
उजाला कहीं मुँह छुपाये बैठा है
नए परिंदे सयाने हैं, जानते हैं
बहेलिया जाल बिछाये बैठा है
हँसी उसी चेहरे पे मिलेगी, जो
लाखों - करोणों कमाये बैठा है
उसे खुदी पे, भरोसा क्या हुआ
हाथ की लकीरें मिटाये बैठा है
मुकेश ने, उम्र भर बोझ ढोया
बुढ़ापे में काँधे झुकाये बैठा है
मुकेश इलाहाबादी -------------
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