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Monday, 12 November 2018

दिलों में डर,डेरा जमाये बैठा है

दिलों में डर,डेरा जमाये बैठा है 
उजाला कहीं मुँह छुपाये बैठा है 

नए परिंदे सयाने हैं, जानते हैं 
बहेलिया जाल बिछाये बैठा है 

हँसी उसी चेहरे पे मिलेगी, जो  
लाखों - करोणों कमाये बैठा है 

उसे खुदी पे, भरोसा क्या हुआ 
हाथ की लकीरें मिटाये बैठा है 

मुकेश ने, उम्र भर बोझ ढोया 
बुढ़ापे में काँधे झुकाये बैठा है 

मुकेश इलाहाबादी -------------

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