आसमाँ पे घर बसाया नहीं जा सकता
और ज़मी पे अब रहा नहीं जा सकता
हालात इतने बदतर हो गए हैं शहर के
कब कहाँ क्या हो कहा नहीं जा सकता
बेहतर है घर में रहो, तेज़ाबी बारिश है
छाते,बरसाती से बचा नहीं जा सकता
ये बस्ती नक्कार खाने में बदल चुकी है
कुछ, भी सुना सुनाया नहीं जा सकता
हर कोई तो यहाँ पे राजा है बादशाह है
किसी को कुछ कहा नहीं जा सकता
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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