नदियां पाटते पहाड़ काटते जाएंगे
हम सिर्फ तबाही का मंज़र पाएंगे
ज़ुबान होगी मगर बोल नहीं पाएंगे
हमारे सारे अलफ़ाज़ गूंगे हो जाएंगे
इंसानियत जिस तरह दम तोड़ रही
इंसान एक दिन पत्थर के हो जाएंगे
अभी वक़्त है धरती बचा लो वरना
बरबादी देवता भी नहीं बचा पाएंगे
जिस तरह हम बर्बर होते जा रहे हैं
फिर से हम गुफाओं में पाए जायेंगे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
हम सिर्फ तबाही का मंज़र पाएंगे
ज़ुबान होगी मगर बोल नहीं पाएंगे
हमारे सारे अलफ़ाज़ गूंगे हो जाएंगे
इंसानियत जिस तरह दम तोड़ रही
इंसान एक दिन पत्थर के हो जाएंगे
अभी वक़्त है धरती बचा लो वरना
बरबादी देवता भी नहीं बचा पाएंगे
जिस तरह हम बर्बर होते जा रहे हैं
फिर से हम गुफाओं में पाए जायेंगे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
No comments:
Post a Comment