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Tuesday, 15 January 2019

रात दिया जलाने को रह गया

रात दिया जलाने को रह गया तुम्हे कुछ बताने को रह गया बीज मेरी मुट्ठी में ही दबा रहा फूल इक खिलाने को रह गया अभी तो सिर्फ ग़ज़लें सुनाई थी लतीफे तो सुनाने को रह गया मुकेश इलाहाबादी ------

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