जब
भी तुम एक पांव के नीचे
दबा के ढोलक
देती ही मीठी - मीठी थाप
अपने मेहंदी लगे
कंगन पहने हाथो से
थोड़ी से गर्दन झुका के
और मुस्कुरा के गाती हो
चैती / कजरी / होरी
बन्नी - बन्ना या कोइ देवी गीत
तब सच मुझे वो खुद बा खुद
लगती हो कोइ देवी
आसमान से उतरी हुई
मुकेश इलाहाबादी --------
भी तुम एक पांव के नीचे
दबा के ढोलक
देती ही मीठी - मीठी थाप
अपने मेहंदी लगे
कंगन पहने हाथो से
थोड़ी से गर्दन झुका के
और मुस्कुरा के गाती हो
चैती / कजरी / होरी
बन्नी - बन्ना या कोइ देवी गीत
तब सच मुझे वो खुद बा खुद
लगती हो कोइ देवी
आसमान से उतरी हुई
मुकेश इलाहाबादी --------
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