नेता
मुझे वोट बैंक समझता है
पांच साल में सिर्फ
चुनाव के वक़्त महत्व देता है
मेरा
मालिक मुझे
मशीन का पुर्जा समझता है
थोड़ा भी ख़राब होने पर रिपेयरिंग की जगह
रेप्लस करना बेहतर समझता है
और मेरे बच्चे
की स्कूल प्रिंसिपल
लिए मै अभिभावक कम
कस्टमर ज़्यादा हूँ
और,
नगर श्रेष्ठि
जब अपनी बड़ी सी गाड़ी से
निकलता है
मुझ जैसे फुटपाथ पे चलने वाले को
कीड़ा मकोड़ा समझता है
और ढेर सारी धुल उडाता फुर्र से
आगे निकल जाता है
तब मै गाड़ी की धूल से खुद को बचाते हुए
यह सोचने लगता हूँ
कि मै
वोट बैंक हूँ ?
मशीन का पुर्जा हूँ ?
कस्टमर हूँ ?
या इंसान हूँ ?
मुकेश इलाहाबादी ,,,,,,,,,,,,,,,,,
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