ये पहले तो, कुछ देर धुँवा देंगे
तुम हवा देते रहो, सुलग उठेंगे
यादों के अलाव जलाये रखो ये,
हिज़्र की सर्द रातों में मज़ा देंगे
ये बारिश की बूंदो से कंहा बुझेंगे
अंगार चाहत के हैं खूब दहकेंगे
तुम्हे जब भी फुर्सत मिले आना
हम इंतज़ार की डेहरी पे मिलेंगे
दिन भर के बाद शाखों पे बैठें हैं
यादों के परिंदे देर तक चहकेंगे
मुकेश इलाहाबादी -------------
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