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Monday, 8 June 2020

मै बहते- बहते रुक गया हूँ

मै बहते- बहते रुक गया हूँ
खामोश दरिया बन गया हूँ
तेरा घर आ गया रास्ते में
तेरे दीदार को रुक गया हूँ
मेरे लिए ठंडी छाँह बन जा
चलते - चलते थक गया हूँ
मोम सी सिफ़त थी अपनी
अब तो पत्थर बन गया हूँ
कारवां के साथ न चल सका
मुकेश बहुत पीछे रह गया हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------

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