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Saturday, 19 September 2020

(एक वार्ता लाप पैंतीस साल बाद अचानक अंतरजाल पे )

 

(एक वार्ता लाप पैंतीस साल बाद अचानक अंतरजाल पे )


- तुम, बहुत मोटी हो गयी हो 

- तुम्हारी भी तो तोंद निकल आयी है 

- हूँ पचास का हो गया हूँ , 

  कुछ तो अंतर् आएगा 

- हूँ ! तो मै भी कहाँ बच्ची रही?

  अगले महीने अड़तालीस हो जाएंगे 

- पर लगता तो नहीं तुम्हे देख के , चेहरे पे 

  वही लुनाई वही मासूमियत 

   (मुस्कराहट सामने वाले के चेहरे पे )

- तुम्हे ऐसा लगता होगा, पर उम्र तो हो ही गयी है 

- हूँ , मेनोपोज़ हो गया तुम्हारा ???

- तुम भी न ?? ये भी कोइ बात है पूछने की ?

- अरे यार तो इसमें शर्माना क्या ??

- पैंतीस साल बाद मिले हो - तो यही बात रह गयी है पूछने की ?

-तो और क्या पूछू? हब्बी कैसे हैं ??

 बच्चे कितने है ?

 बच्चे क्या करते हैं ???

 यही न ? अरे ये सब तो अब पूछते पूछाते रहेंगे 

 अच्छा ये बताओ अभी भी तुम लोगों में कुछ होता है ? आपस में ?

प्यार व्यार ??

- तुम कभी नहीं सुधरोगे - मुझे लगा बूढ़ा गए हो तो कुछ ढंग की बात करोगे 

  पर तुम वैसे के वैसे ही हो 

 कुछ ढंग की बात करनी हो तो ठीक वरना मै ऑफ लाइन हो रही हूँ 

 बहुत काम है 

- अरे यार रुको न ???

- नहीं ! अब बाद में 


हरी लाइट ऑफ हो जाती है 


मुकेश इलाहाबादी ---------------

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