कुछ
लोग सूरज की तरह
होते हैं, जो सुबह होते ही
मुस्कान की सुरमई धूप
बिखेरते हुए निकल पड़ते हैं
एक लम्बी यात्रा में
सड़क, नदी पहाड़
लांघते हुए चककर लगाते हैं
पूरी धरती का आकाश का
अंतरिक्ष का
भर देते हैं अपने सारे जहान को
जीवन ऊर्जा से
शाम थक डूब जाते हैं
एक गुप्प अँधेरे में
सुबह फिर से निकलने के लिए
एक नए सफर के लिए
वहीँ
कुछ लोग
चाँद की तरह होते हैं
जो सूरज के डूबते ही
सज धज के निकलते हैं
एक प्यारी और ठंडी मुस्कान के साथ
और फिर अपने सितारे साथियों के
साथ ठिठोली करते हुए
रात भर लुटाते हैं
एक शीतल रोशनी
प्यार की
और एक ठंडी ऊर्जा से
रात भर अपनी
मुस्कान बिखेर के
सूरज के निकलने के पहले - पहले
छुप जाते हैं
दिन के आँचल में
शाम तक के लिए
टाटा - बाय बॉय करते हुए
साँझ फिर से निकलने के लिए
पर सच तो ये है
हर इंसान के अंदर
एक सूरज और एक चाँद
रहता है
जो उसे हर दम दौड़ाए रखता है
मौत आने तक
मुकेश इलाहाबादी -------------
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