रात
मेरी हथेलियों पे
दो उजले उजले बादल
उतर आए
जिन्हें पाकर मैं बहुत खुश था, बादल भी
उजले उजले बादल
मेरी मुट्ठी मे बरसने लगे
मैं भीगने लगा
बादल - बरस के अब
आसमान मे इंद्र धनुष
बन चमक रहे हैं
और मैं
उन उजले - उजले
बादलों को
हाथ हिला के
अभिवादन कर रहा हूं
मुकेश इलाहाबादी,,,,,
No comments:
Post a Comment