बैठे ठाले की तरंग  -------------------------------------------------------
(अर्धनारीश्वर की अवधारणा से प्रेरित हो कर)

मै तुम्हारे इतने करीब इस लिए नहीं आना चाहता कि,
तुम एक औरत हो, और मै एक मर्द
जो टटोलना चाहता है
तुम्हारी देह में उगे
खेत खलिहान को
और रपटना चाहता है
तुम्हारी चिकनी और चमकदार सतह पर
और फिर  खुश हो
चल पड़े फिर किसी और शिकार की तलाश में
बल्कि मै तुम्हारे नज़दीक इसलिए आना चाहता हूँ कि
तुम्हारी
सुरमई आखों के अन्दर
बहते हुए पनीले झरने में नहा के ताज़ा दम हो जाऊं
गंगा स्नान की तरह
या फिर तुम्हारी काली घनी आबनूषी लटों की छाह में
बैठ, रूहानी तान छेड़ सकूं 
फिर प्रेम गीत गाते हुए
अनहत नाद में डूब जाएँ 
ताकी जब मेरे अन्दर की पार्वती तुमारे अन्दर के शिव से एकाकार हो
और तुम्हारे बाहर की भवानी मेरे बाहर के शिव से तादात्म्य करे
और एक वर्तुल सा बने जिसमे एक नाद हो
ब्रम्ह्बाद

------------------------------------------------------------मुकेश इलाहाबादी