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Thursday 28 May 2015

फिर - फिर तुम सावन लिखना


फिर - फिर तुम सावन लिखना
मौसम तुम मनभावन लिखना

जिन  आखों  मे  मै  सूरत देखूं 
उन  नैनों  को  आनन  लिखना

हैं  छह  रितुऐं और बारह मॉह
प्यार के हफते बावन लिखना

मन  की  चादर उजली रखना
प्यार की गंगा पावन लिखना

लोग कहें हैं मुझको मुक्कू पर
तुम तो मुझको साजन लिखना 

मुकेश इलाहाबादी ---------

Wednesday 27 May 2015

आग नहीं सिर्फ धुआं बाकी है

एक मत्ला - दो शे 'र
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आग नहीं सिर्फ धुआं बाकी है
निशाँ कहर ऐ तूफाँ बाकी है
पनिहरिने अब नहीं आती हैं
पानी नहीं सिर्फ कुआँ बाकी है
यूँ तो ख़ाक में मिल चूका हूँ
बस खुद्दारी का गुमाँ बाकी है
मुकेश इलाहाबादी ------------

दिन आवारा, बेहया रातें हैं

दिन आवारा, बेहया रातें हैं
रेत की नदी कागजी नावें हैं

इस आग  बरसते मौसम मे 
सुलगते दिन दहकती रातें हैं

हालात मे तब्दीली आयेगी 
छोडिये,  बेकार की बातें हैं

दरार होती तो पट भी जाती 
रिस्तों मे उंची - २  दीवारें हैं

कहीं कांटे हैं,  तो कहीं खाई 
मुकेश बडी मुस्किल राहें हैं

मुकेश इलाहाबादी ----------

Monday 25 May 2015

दर्द तो बहुत हुआ, तुझे भूल जाने में

दर्द तो बहुत हुआ, तुझे भूल जाने में
लेकिन अब कुछ शुकून सा रहता है
मुकेश इलाहाबादी -------------------

सांझ का अंधेरा घना है

सांझ का अंधेरा घना है
मन मेरा भी अनमना है

मुस्कान रख ली जेब मे
खुल कर हंसना मना है

है खुशी देर से लापता
दुख सीना ताने तना है

रिश्तो मे सर्दपन  सही
लहजा तो  गुनगुना  है

मुकेश अच्छा लिखता है
यह  तो  मैने भी सुना है

मुकेश इलाहाबादी ------

Sunday 17 May 2015

मै लिखना चाहता था - कविता

मै
लिखना चाहता था -  कविता
पर, मेरे पास
कागज़ न था
स्याही न थी

तुम,  मुस्कुराईं
तुमने फैला दिया
अपना आँचल
बिखेर दी स्याह ज़ुल्फ़ें 

मै, युद्ध रत था
रथ पे सवार था
विश्व विजेता बनने की चाह थी
तुम - पहिये की धूरी बन गयी
घूमती रही -
अहर्निश - चुपचाप

मै, बनना चाहता था
धर्मराज,
हारा, तुम्हे जुएं मे
पाया वनवास
पर तुमने भी तो गहा
वनवास मेरे साथ
गेसुओं को खोले - खोले

मेरे पुरुषोत्तम,
बनने की राह में भी
तुम  रहीं साथ - साथ
फिरीं वन - वन
और देती रहीं अग्नि परीक्षा - अकेले ही
चुपचाप

पर अब - मै
करना चाहता हूँ
पश्चाताप
हो जाना चाहता हूँ
तुम्हारा - सिर्फ तुम्हारा
वही,
आदम -हव्वा सा
शिव - पार्वती सा
फूल और खुशबू सा
एक प्रेम गीत सा
और - उसके भाव सा

मुकेश इलाहाबादी -----------

Saturday 16 May 2015

सब के सब मजबूर मिले

सब के सब मजबूर मिले
दर्द ओ ग़म से चूर मिले
केवल मै ही था गुमनाम
बाकी सब मशहूर मिले
जिस्मो की नजदीकी थी
दिलसे लेकिन दूर मिले

चेहरे हमने जितने देखे
सबके सब बेनूर मिले

दूजे की क्या बात करें ?
तुम भी तो मगरुर मिले


 मुकेश इलाहाबादी --------------

आंसू

जब,
शब्द,
भावाभिव्यक्ति में
असमर्थ हो जाते हैं
तब,
जिस्म का पानी
जिस्म के नमक के साथ
घोल लेता है
तमाम
सुख- दुःख
हर्ष - विषाद
आशा - निराशा
प्यार - घृणा
या फिर
बरसों का संजोया दर्द
और, बह निकलता है
आखों से, जिसे
हम आंसू कहते हैं

लिहाज़ा,
इस एक बूँद को
महज़ नमकीन पानी की
एक बूँद मत समझो
मुकेश बाबू
अगर, अभी नहीं समझे
तो, उस दिन समझोगे
जिस दिन सूख जाएंगे
तुम्हारी,
आँख के आँसू

मुकेश इलाहाबादी ----

प्रेम मे, तुमने चुना - मृत्यु

प्रेम मे,
तुमने चुना -  मृत्यु
मैने चुना - जीवन

मै हंसा
मैने कहा
जीवन है तो प्रेम है

तुम चुप रहीं
मुस्कुराई
बस
खिली फूल सा
महमहाई खुशबू बन
और मुरझा गई
जल्द ही
फिर फिर खिलने को
मरने को
प्रेम मे होने को

उधर मै भी खिला
खिला रहा युगों युगों तक
पत्थर बन
बिना खुशबू
बिना कोमलता
पछताता रहा तुम्हारी मूर्खता पे
खुश होता रहा
अपने मरे हुये जीवन पे

और खिलने न दिया एक भी
फूल अपने सीने पे
आने न दिया एक भी वसंत अपने ह्रदय पे
पर तुम
हजारों हजार बार
खिलती रही
मरती रहीं
महमहाती रही
और
अगर कभी मेरा पत्थर पन
देव बन
किसी देवालय मे स्थापित हुआ
तब भी मेरा पूजन अधूरा रहा
बिना पुष्प के
बिना तुम्हारे

मुकेश इलाहाबादी --------------

Thursday 7 May 2015

जब भी कोई मेरे अंदर झांकता है

जब भी कोई मेरे अंदर झांकता है
अँधेरा औ प्यासा कुआं दिखता है
है दिल मेरा उजड़ा  हुआ गुलशन
जिसमे बदहवास  माली रहता है
हूँ  उजड़ी  मीनार का टूटा गुम्बद
यहाँ  पर सिर्फ कबूतर बोलता है
दस्तक देने वाले लौट जाओ तुम
यहाँ  इक पागल दीवाना रहता है
मुकेश  इक  सूखा  पहाड़ी  झरना
जिसे बारिस का इंतज़ार रहता है
मुकेश इलाहाबादी --------------

ख़त ,,,, अपने प्रेमी से बिछडे हुये लोगों के लिये एक आस होता है। एक इंतजार होता है

सुमी,

मेरी प्यारी सुमी, क्या तुम जानती हो मै तुम्हे इतने सारे ख़त क्यूं लिखता हूं ?
नहीं जानती  तो सुनो।
मेरे ये ख़त, ख़त नही इस बात की गवाही हैं कि तुम्हारा यह प्रेमी पागल प्रेमी सही सलामत है। आज भी जिन्दा है। और ये खत इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि तुम्हारे इस चाहने वाले के दिल की धडकने आज भी तेरे नाम से धडक रही हैं। उसकी रगों मे खूॅ के नाम पे तुम्हारी यादों की कहानी की रवानी है। उसकी सांसो मे तुम्हारी ही खुशबू है जो हर रात चम्पा, चमेली तो कभी रात रानी बन के महकती हैया फिर।  या फिर किन्ही उदास रातों मे महुआ सी टपकती है महकती है जो शराब के फाहे बन के चोटों को सहला जाती हैं। और अगर दर्द फिर भी बरदास्त के बाहर हो जाता है तो यही हर्फ की मानिंद कागजों मे उतर आते है खतों की मानिंद ।

तो मेरी प्यारी सुमी, मेरी प्यारी महुआ खतों के बाबत एक बात और जान लो।

ख़त ,,,, अपने प्रेमी से बिछडे हुये लोगों के लिये एक आस होता है। एक इंतजार होता है जिसके सहारे वे अपने विरह की तमम घडियां काट देते हैं।
खत विरह मे डूबे प्रेमी के लिये रेगिस्तान मे पानी की बूंद होता है अम्रत होता है।

खत आयेगा इस बात के इंतजार मे इंन्सान पूरी जिंदगी बिता सकता है।

ख़त सिर्फ कागज पे लिखे अल्फाज नही होते। इसमे भेजने वाले की तडप होती है, मुहब्ब्त होती है, मिलने का इंतजार होता है। उसके सुख और दुख को दस्तावेज होता है जो भेजने वाला अपने प्रेमी के साथ साझा करना चाहता है।

खत एक पुल होता है दो बिछडे हुये लागों के बीच जो उन्हे जोडे रहता है।
सुमी यही वजह है जो मै तुम्हे खत लिखना बंद नही करता। क्योंकि तुम्हारे जाने के बाद से ये खत ही तो है जो हम जोडे हुये हैं।
तुम्हे लिखे खत ही तो मेरी टूटती सांसों की डोर बनते हैं। सूखते हुये जीवन बिरुआ के लिये खाद पानी बनते हैं। जीने के लिये एक आस बनते हैं।

अब जब खतो के बाबत बात चल ही निकली है तो मै अपनी प्यारी सुमी को बताना चाहूंगा कि ये खत जिन्हे हिन्दी मे पत्र अंग्रेंजी मे लेटर और बोलचाल की भाषा मे चिटटी या संदेसा  भी कहते हैं। जो आज कल एस एम एस के रुप मे भेजे जाते हैं या नेट से भेजे जाते हैं जिन्हे कभी डाकिया ले के आता थ। और तब लोगों की ऑखें डाकिये के इंतजार मे टंगी रहती थी। अगर वह खत आ जाता था तो प्रेमी की खुशी देखते ही बनती थी।
एक बात और जान लो सुमी इन खतों को इतिहास भी उतना ही पुराना है जितनी पुरानी सभ्यता है।
कल्पना करो तो जान जाओगी की उस जमाने मे जब लिखने के लिये कागज नही रहे होंगे इन्सान के पास इतनी उन्नत भाषा न रही होगी डाकिये न रहे होंगे तब दुनिया के सबसे पहले विरही ने अपना खत हवाओं की सरजमी पे लिखा होगा और यह कहा होगा कि  ' ऐ हवाओं,  तुम तो बहती हो तो तुम ही जा के मेरे प्रेमी से मेरा हाल बता दो'  या कि उसने नदी की लहरों पे अपना पहला खत लिखा होगा और कहा होगा कि ‘'ऐ लहरों तुम तो बहती रहती हो तुम तो हमारे प्रेमी के गांव तक जाती हो लिहाजा तुम मेरे हाल को मेरे संदेसा को मेरे प्रेमी पति तक पहुंचा दो'। और फिर जब उसने लिखना सीख लिया होगा तो कभी किसी पेड की छाल पे या किसी पत्ते पे अपना संदेसा लिख के किसी कबूतर से भिजवाया होगा। या फिर किसी दोस्त के हाथो अपना अहवाल कहलाया होगा और वह पहला कासिद ही पहला डाकिया बना होगा।
मुझे तो ऐसा लगता है सबसे पहले प्रेमी ने किसी गुफा की दीवारों मे कोयले से या फिर किसी नुकीली चीज से खुरच के अपना पहला संदेसा या खत लिखा होगा।
इसके अलावा वो एक जमाना था जब खत लिख तो लिया जाता था पर उसे अपने प्रेमी तक पहुचाना बहुत बडी बात होती थी। जिन्हे अपने ठिकाने पे पहुंचने मे कई दिन ही नही महीनो और सालों  लग जाते थे और इतना ही वक्त जवाब आने मे लग जाते थे, कई कई बार तो यह भी पता नही लगता था कि उसका खत सही हाथो मे पहुंचा भी या नही। आज का जमान नही कि इधर मोबाइल मे लिखा बटन दबाया और उधर प्रेमी के पास पहुंच गया। और पलक झपकते जवाब भी आ गया। तब तो उम्र गुजर जाती थी अपने एक खत का जवाब पाने मे या पंहुचाने मे।
लेकिन ये बात जान लो मोबाइल और नेट के खतों म अब वो बाते कहां? वो तडप वो संजीदगी वो लिखने का तरीका वा खत पाने और पढने की बेताबी कहां। लेकिन  इन सुपर फास्ट पहुंचने वाले खतों का भी अपना एक अलग मजा है आनन्द है।

मैने तो सुना है खत लिखने वाले भी बडे जुनूनी हुये हैं। कुछ लोगों ने तो इतने बडे - बड़े खत लिखे हैं कि जिनका नाम गिनीज बुक्स आफ वर्ड रिकार्ड मे दर्ज है। कुछ प्रेमी तो ऐसी हुये हैं जिन्होंने तो स्याही न मिलने पे अपने खून से खत लिखे हैं
कुछ लोगों ने तो खत के रुप मे पूरा का पूरा काव्य ही उतार दिया है जैसे रानी नागमती ने अपने विरह मे जो जो भी कहना चाहा अपने प्रेमी से वह सब एक काव्य बन गया महाकाव्य बन गया जिसे जायसी ने बडी खूबसूरती से ‘पदमावत’ मे उद्धृत किया है।
खैर ... मेरी सुमी मै तो इतना महान तो नही कि कोेई महाकाव्य लिख सकूं या इतना भी पागल दीवाना नही कि अपने खून से खत लिखूं या कि हवाओं और नदी का धराओं पे तुम्हारे नाम का खत लिखूं हॉ इतना जरुर है कि जब कभी तुम बेहद याद आने लगती हो। तब तब मै तुम्हे ये खत लिखता हूं और तब एक शूकूं सा मिल जाता है जीने का इक सहारा हो जाता है।
खैर अब इस खत को यहीं विराम देता हूं यह कह के कि जब तक तुम तक मेरे खत पहुंचते रहें तब तब समझना कि तुम्हारे इस पागल प्रेमी की सांसे चल रही हैं। दिल धडक रहा है। ओर जिस दिन ये खत न पहुंचे तो समझ लेना कि ये प्रेमी अब हवाओं मे घुल चुका है जो अब सिर्फ खुशबू बन के ही तुम तक पहुंचेगा। या कि जल के गल के पानी की धार मे मिल चुका है जो इन लहरों के मार्फत तुम तक पहुंचेगा। या कि बादल की बूंदे बन के तुम्हारे आँगन  मे बरसेगा। या फिर ये भी  हो सकता मै एक  तारा बन  जाऊं और आसमान मे प्रेम का तारा शुक्र तारा बन के तुम्हारी छत पे खिलूँ ।
और जब तुम किसी उदास या तन्हा रातों को छत पे आओगी तो मै तुम्हे देख के मुस्कुराउंगा और तब भी तुम मेरी बातों से भावों से अन्जान रह के आसमान मे टंगे हजारों लाखों तारों की तरह मुझे देखोगी कुछ देर और फिर अपने काम मे मशगूल हो जाओगी रोज की तरह।
और मै टंगा रहूंगा आकाश मे तारे की तरह प्रेम की तारे शुक्र तारे की तरह।
और मेरे ये खत कहीं फडफडा रहे होंग उड जाने के लिये जल जाने के लिये गल जाने के लिये जर्द जर्द हो के।

मुकेश इलाहाबादी ..

Sunday 3 May 2015

दर बदर मै भटका बहुत

दर बदर मै भटका बहुत
उम्र भर रहा तन्हा बहुत

जिंदगी तेजाब की नदी
झुलसा, मगर तैरा बहुत

बचपन की सहेली जिसे
मिली नही पै ढूंढा बहुत

चॉद नदी मेे उतरा नही
दरिया ने मनाया बहुत 

मुकेश जैसा इसांन भी
फूट फूटकर रोया बहुत

मुकेश इलाहाबादी ...

खौलती धूप बरसती है

खौलती धूप
बरसती है
दिन भर
और
उग आते हैं
फफोले
जिस्मो जॉ पे

सॉझ
मल जाती है
संदली मलहम
रिसते घावों पे


रात
तब्दील हो जाती है
रातरानी मे
जो महमहाती है
तेरे रेशमी यादों के ऑचल मे

मुकेश इलाहाबादी .